रीना एक छोटी-सी लड़की थी, जिसे खेल-कूद और क्रिएटिव एक्टिविटी बहुत पसंद थी। उसके स्कूल में हाल ही में एक नई कराटे क्लास शुरू हुई थी, जिसमें Sensei अमित आते थे।

एक दिन क्लास में Sensei अमित ने कहा:
“कराटे सिर्फ पंच और किक नहीं है। यह आत्म-विश्वास, सामंजस्य, और अपनी शक्ति को सही दिशा में इस्तेमाल करने का तरीका है।”
रीना ने सोचा-सोचा और अगली क्लास में गयी। वहाँ Sensei अमित ने कुछ अभ्यास करवाया — वार्म-अप, सटीक स्टांस, धीरे-धीरे काम करना।

> “अगर तुम कराटे सीखोगे, तो तुम आत्म-रक्षा सीखोगे, शालीनता सीखोगे, और दूसरों का सम्मान भी सीखोगे।”
रीना ने इस बात को महसूस किया। कुछ महीनों बाद, स्कूल में एक अन्य बच्चा (रोहित) कराटे क्लास में शामिल हुआ — लेकिन उसे डर था कि अगर वो गलती करेगा तो Sensei अमित नाराज होंगे। रीना ने उसकी मदद की — उसे समझाया कि “गलती करने से सीख मिलती है” और “कराटे में सबसे बड़ी जीत यह है कि तुम खुद से हारो नहीं।”
फिर एक दिन स्कूल-समारोह में कराटे प्रदर्शन हुआ। रीना, रोहित और बाकि बच्चों ने मिलकर एक छोटी-सी टीम बनायी — उन्होंने लड़ाई जैसा नहीं बल्कि एक सहयोग-फॉर्म दिखाया, जिसमें स्टांस, ब्लॉक, किक, और फिर सिरियस-अक्टिंग (दिक्कत से सामना करना) थी।

स्कूल के प्रधानाचार्य ने भी कहा:
> “आज हमने देखा कि कराटे ने इन बच्चों में सिर्फ तकनीक नहीं बल्कि चरित्र भी विकसित किया है।”
रीना ने सोचा, आज से मैं कराटे सिर्फ खेल की तरह नहीं बल्कि जीवन का एक हिस्सा बनाऊँगी — जहाँ मैं हर दिन सीखूंगी, आत्म-विश्वास बढ़ाऊँगी, और दूसरों की मदद भी करूँगी।
और इस प्रकार, रीना ने अपनी छोटी-सी खोज से बड़ी-सी सीख पाई: कराटे लड़ने का माध्यम नहीं, बल्कि सुरक्षा, सम्मान, और स्व-विकास का माध्यम है।





